दोस्तों ये प्रचलन बहुत बढ़ गया है कि हिन्दुओ को गाली देने के नए नए तरीके निकालते है लोग जाने कहाँ – कहाँ से ज्ञान लाते है लोग, एक कहानी पढ़ी थी लकड़ी काटने वाली कुल्हाड़ी का साथ अगर लकड़ी के हत्थे ने न दिया होता तो लकड़ी काटना बहुत मुश्किल होता। दोस्तों ये १०० % सच है. जब हिन्दू ही हिन्दू धर्म को बुरा कहने लगे गलती हमारी ही है। हमने कभी भी उंगली उठाने वालों को सज़ा नही दी जब भी उन्होंने हमारे धर्म को गलत कहा, हमारे देवताओं को गालियां दी, हमारे नंगी तस्वीरें बनायीं , हमरे भारत माता को डायन कहा हमने कहने दिया लेकिन ठीक वहीं दूसरे सम्प्रदाय के लोग न तो अपने धर्म को बुरा कहते है ना ही सुनते है यही कारण है कि हिन्दू विरोधी ज्यादा ही बेलगाम हो गए। अपने आप को ज्यादा बुद्धिमान साबित करने के लिए सिर्फ हिन्दुओ को उनकी परम्पराओ को गलत ठहराते है, क्यों कि हिन्दू धैर्य रखना जनता है उसने कभी अपना प्रचार नही किया, कभी नही कहा कि हम श्रेष्ठ है, कभी किसी दूसरे धर्म को बाध्य नही किया हिन्दू धर्म अपनाने के लिए लेकिन जब-जब कोई धर्म खतरे में पड़ा तो हिन्दू धर्म ने अपनी शरण मे लेकर उसे पोषित किया और बड़ा किया। लेकिन आज यही हिन्दू धर्म लाचार है, मजबूर है, अपनो के हाथों घायल है।
दोस्तों लेकिन अब हमे इसे मजबूत करना होगा। मैं देख रहा हूँ बिना हिन्दू धर्म को जाने उनकी परम्पराओ पे टिप्पड़ी करने से बाज नही आते हैं लोग।
आज कल एक चर्चा बहुत है कि मृत्यु भोज नही होना चाहिए, कोई गरीब कैसे कराए मृत्यु भोज। अरे तो कौन कहता है करो नही कर सकते तो मत करो आप बाध्य नही हो फिर भी आप इसका दुष्प्रचार कर रहे है पहले तो जाने की ये परम्पराये है ही क्यों मैं आज आपको बताता हूँ कुछ वृस्तित रूप से
दोस्तों कहा जाता है कि जब मृत्य के बाद आत्मा का लगाव उस परिवार से वहां के लोगो से गांव घर से परिवेश से होता है आत्मा को भी मोह होता है। वह जल्दी इसे छोड़ कर जाना नही चाहती लेकिन इन संस्कारों के माध्यम से उसका मोह भंग किये जाने का प्रयास किया जाता है, ऐसी अवधारण है मृत्यु का बाद उस मृत व्यक्ति का मोह भंग करने के लिए ही उसके सबसे प्रिय संबंधी से उसका दाह संस्कार कराया जाता है, और किसी भी व्यक्ति का सबसे प्रिय अगर कोई होता है तो वो है उसका पुत्र सबसे बड़ा या सबसे छोटा इसी लिए उस मृत आत्मा को ये दर्शाया जाता है कि जिसे वो सबसे ज्यादा प्यार कर रही है, जिसके मोह के कारण जाना नही चाहती। वही उसके शरीर को जला रहा है क्यों कि उसका अपना शरीर उसे सबसे ज्यादा प्यार होता है जिसे जलाया जाता है। ताकि उसका मोह भंग हो सके फिर उसके बाद एक प्रथा है वही शमशान घाट पर मिठाई खाने की यह भी आत्मा के मोह भंग को दर्शाया जाता है, कि अब ये खुशी मना रहे है यहाँ पर भी आत्मा के मोह भंग करने का कारण ही है और तीसरा सबसे बड़ा तेरहवीं में भोज यह भी उस मृत आत्मा का मोह भंग कराने का एक कारण ही है। लेकिन दोस्तों अब कुछ अलग ही तरह से कर्मकाण्ड करते है जैसे जिसकी तेरहवीं होती है उसके मन पसंद का खाना बनवाते है मिठाई बनवाते है लेकिन ऐसा नही होना चाहिए।
हम इस बात को समझे कि हमारे पूर्वज कितने बुद्धिजीवी थे कि उन्होंने ऐसी परंपरा बनाई जिससे व्यक्ति मृत आत्माओ जैसी बातों और उसके बाद बहुत अनजाने वाली बातों पर विश्वास न करे और ये एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक आधार भी है की इस प्रकार की परम्पराओ का निर्वहन कर हम आश्वस्त होते है कि हम उस मृत आत्मा से मुक्त होगये उसका कोई मोह हमारे लिये नही रहा और डर जैसी बातें हमारे मन मे नही आती, इससे इतर अगर विदेशो में देखे तो भूत प्रेत जैसी बातों पर बहुत विश्वास करते है । ये सारे हिन्दू कर्म कांड बहुत ही वैज्ञानिक और मनोविज्ञानी तरीके से बनाये गए है लेकिन अज्ञानतावश हम खुद को ज्यादा बुद्धिमान समझते हुए इनका अनादर करते है इन पर सवाल उठाते है एक तरह से विरोध करते है लेकिन सच मे न तो हम हिन्दू धर्म को जानते है और न ही ढंग से मानते है। जिस दिन हमने इस धर्म को निष्ठा पूर्वक मान कर इसका निर्वहन करेंगे हमें दोबारा फिर से विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता। कुछ रही होगी मेरे भारत में यूँ ही है सोने की चिड़िया नहीं कहता था।

नितीश श्रीवास्तव
कायस्थ की कलम से
तो मित्रों ये थी हमारे हिंदू धर्म से जुडी एक विशेष जानकारी, जिसे मैंने आपसे साझा की। येसे ही महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर निरंतर आते रहे और अपने दोस्तों ,परिवार वालों और सभी प्रियजनों तक भी ये महत्वपूर्ण जानकारी पहुचायें। धन्यवाद।