स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे को खुद गांधी ने कहा था राशिद मेरा भाई है! :: Do you know ?

By | June 12, 2021
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स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे को खुद गांधी ने कहा था राशिद मेरा भाई है

“स्वामी श्रद्धानंद” शायद आप नहीं जानते होंगे ! आखिर आप जान कैसे पाएंगे? जब उसी बराबर साजिश साजिश भरी हो। 

दोस्तों उन दिनों अंग्रेजों का शासन लगभग चरम पर था,  ईसाइयत का बोलबाला हो रहा था, इस्लामिज्म अपना दहशत बरकरार रखने के लिए खून खराबे पर उतारू था, और हमारे वीर क्रांतिकारी अपने जज्बे के साथ अंग्रेजों पर भारी पड रहे थे लेकिन कहते है न ‘जब घर में ही आग लगी हो तो बहार कौन बुझाने जाए’ स्वामी श्रद्धानन्द अपने पूर्ण निष्ठा और लगन से हिन्दुओं को एकजुट करने में लगे हुए थे। ये बात गैर हिन्दुओं को अखरने लगी की ये तो हिन्दुओं का  मसीहा बन गया है इन्ही सब बातों का आधार बनाकर एक अब्दुल राशिद नामक उन्मादी ने स्वामी जी को गोली मार दी। स्वामी श्रद्धानंद को गोली मारने वाले अब्दुल राशिद को रंगे हाथ पकड़ लिया गया था, लेकिन फिर वो दो साल बाद वह बरी हो गया। इसमें महात्मा गांधी का बड़ा योगदान था। गांधी ने स्वयं स्वामीजी की हत्या के बाद एक मंच से कहा था, ‘राशिद मेरा भाई है और मैं बार-बार यह कहूंगा। हत्या के लिए मैं उसे दोषी नहीं ठहराता। दोषी वह लोग हैं जो एक-दूसरे के खिलाफ नफरत फैलाते हैं। उसकी कोई गलती नहीं है, उसे दोषी ठहराकर किसी का भला नहीं होगा।’
(गाँधी जी सिर्फ अच्छे ही नहीं थे! उनमे भी ये कमियाँ थी :: Gandhi ji was not only good)

गांधी ने अपने भाषण में यह भी कहा – मैं इसलिए स्वामी जी की मृत्यु पर शोक नहीं मना सकता क्योकि हमें एक आदमी के अपराध के कारण पूरे समुदाय को अपराधी नहीं मानना चाहिए। मैं अब्दुल रशीद की ओर से वकालत करने की इच्छा रखता हूँ। उन्होंने आगे कहा कि “समाज सुधारक को तो ऐसी कीमत चुकानी ही पढ़ती है। स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या में कुछ भी अनुपयुक्त नहीं है। अब्दुल रशीद के धार्मिक उन्माद को दोषी न मानते हुये गांधी ने कहा कि “ ये हम पढ़े, अध-पढ़े लोग हैं जिन्होंने अब्दुल रशीद को उन्मादी बनाया। स्वामी जी की हत्या के पश्चात हमें आशा है कि उनका खून हमारे दोष को धो सकेगा, हृदय को निर्मल करेगा और मानव परिवार के इन दो शक्तिशाली समूहों के विभाजन को मजबूत कर सकेगा।
 अगर किसी की वकालत खुद गांधी कर रहे हों तो कौन-सा कानून आरोपी को सजा देता। गांधी के प्रयासों से राशिद को छोड़ दिया गया। यह जानते हुए भी कि स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती उस समय देश के सबसे बड़े हिंदू धर्मगुरु थे।
जिस प्रकार अभी आपने देखा और पढ़ा होगा कि हिन्दू धर्म के शुभचिंतक स्वर्गीय श्री कमलेश तिवारी जी को मारा गया था ठीक उसी प्रकार साजिश को रचकर स्वामी जी को भी  23 दिसम्बर 1926 को नया बाजार स्थित उनके निवास स्थान पर अब्दुल रशीद नामक एक उन्मादी धर्म-चर्चा के बहाने उनके कक्ष में प्रवेश करके गोली मारकर इस महान विभूति की हत्या कर दी। उसे बाद में फांसी की सजा हुई थी, लेकिन गांधी के कारण वह बच गया।
स्वामीजी गुरुकुल खोलना चाहते थे। गांव-गांव जाकर चंदा मांगा, लेकिन किसी ने सहयोग नहीं दिया। जालंधर में उनके पुरखों की खूब जमीन-जायदाद थी, जिसकी मलकियत स्वामीजी के नाम थी। अपने बेटों से विमर्श के बाद सारी जमीन आर्य समाज को दान दे दी। फिर कांगड़ी के सरपंच ने गांव की सारी जमीन स्वामी जी को दान कर दी। आज उस जगह विश्व का सबसे बड़ा गुरुकुल स्थापित है। जहाँ आज भी आर्य समाज का परचम बड़े गर्व के साथ लहरा रहा है।

कैसे उनकी हत्या की
उनके शिष्यों से लगातार 3 महीने संपर्क में रहकर हिंदू धर्म पर परिचर्चा के बहाने समय लेने की कोशिश करता रहा आखिरकार स्वामी जी ने उस हत्यारे को परिचर्चा के लिए समय दिया। समय मिलने के पश्चात् वह स्वामी जी के हत्या करने की पूरी तैयारी करके वह नया बाजार स्थित उनके निवास स्थान पर आ गया। स्वामीजी उस वक्त निमोनिया से पीड़ित थे। राशिद ने लोई में छिपा रखी पिस्तौल से उन पर गोलियां दाग दीं और शहीद कर दिया। राशिद को मौके पर ही पकड़ लिया गया था।
स्वामी श्रद्धानन्द 1920 के दौर में हिंदुओं के सबसे बड़े धार्मिक गुरु थे।आर्य समाज के प्रमुख थे और उनकी लोकप्रियता के सामने उस दौर के शंकराचार्य भी उनके सामने कहीं नहीं ठहरते थे। वो सिर्फ हिंदुओं के आराध्य ही नहीं थे, महान स्वतंत्रता सेनानी भी थे। वो अपनी छत्रछाया में मोहनदास करमचंद गांधी को भारतीय राजनीति में स्थापित कर रहे थे। असहयोग आंदोलन के समय वो गांधी के सबसे बड़े सहयोगी थे।
दोस्तों उस समय भारत का पहला आतंकवादी अब्दुल रशीद था जिसने महान संत और गौरक्षक स्वामी श्रद्धानंद की हत्या की थी और गांधी ने उसे बचा लिया।
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