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Things Of “RAMAYANA” |
सीता स्वयंबर का यह वर्णन शायद ही किसी को पता हो
दोस्तों आज मै आप लोगों को रामायण का बहुत ही अद्भुद क्षण जिसे श्री राम विवाह या श्री सीता स्वयंबर के नाम से जानते है उसी क्षण का एक अलौकिक वर्णन आपके सम्मुख प्रस्तुत करता हूँ यह वर्णन शायद ही किसी को पता हो –
लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़े, काहुँ न लखा देख सब ठाढे।
तेहिं छन राम मध्य धनु तोरा, भरे भुवन धुनि घोर कठोरा।।
उपर्युक्त दी गयी पंक्ति का आशय उतना सरल नही जितना आप समझ रहे है ,यू तो इन पंक्तियों का अभिप्राय इस संदर्भ में है जब सीता स्वयंबर हो रहा था, बताता चलूं की इन पंक्तियों का आशय यह है कि भगवान राम ने धनुष लिया प्रत्यंचा चढ़ाई उनके ऐसा करते समय सभी स्तब्ध खड़े देखते रहे और देखते ही देखते छन से धनुष को बीच से तोड़ दिया और उसकी कठोर ध्वनि पूरे भवन में भर गई।
इसका पूरा आशय मैंने पहले ही बता दिया लेकिन पहले ही बताने का मतलब बाद में बताऊंगा अब बढ़ता हूँ कहानी की ओर–
जैसा कि सभी जानते है माता सीता का स्वयंवर चल रहा था दूर देश से सारे राजा आये हुए थे एक से एक बलवान धुरंधर जिनमे रावण खरदूषण और न जाने कौन कौन जो उस समय के सबसे बलवान एवं ताकतवर थे , फिर भी क्या ऐसा संभव था कि इनमें से कोई भी धनुष को यानी शिव धनुष को न उठा पाए लेकिन हुआ यही वह रावण जिसने शिव समेत कैलाश को अपने हाथों से उठाया हो वह एक अदना सा धनुष नही उठा पाया ऐसा कैसे संभव था और साधारण से दिख रहे श्री राम ने धनुष को उठाया ही नही वरन तोड़ भी दिया जी हाँ यही हुआ भी क्यों कि यह सब पहले से ही सुनियोजित था और इस योजना में शामिल थे श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण माता सीता और उनकी माता जी ,
हुआ दरअसल कुछ यूं कि सीता जी ने राम को पहले ही वाटिका में देखा और मन ही मन श्री राम को अपना पति मान बैठी लेकिन जनक जी की शर्त भी उन्हें याद भी फिर कैसे वो श्री राम का वरण करेंगी कैसे होगा यह सब इसी उधेड़बुन में उन्होंने यह सब बात अपनी माता यानी पृथ्वी माता को बताई ,एक पुत्री अपनी माँ के सबसे करीब होती है उसे क्या चाहिए कैसा चाहिए अपनी माँ से कभी नही छिपाती और फिर मा का भी दायित्व है कि वह अपनी पुत्री के मनोरथ को जाने और उसे पूरा करे और फिर जब मां चाहले फिर कौन उसे रोक सकता है और यह तो बात अपनी प्रिय पुत्री के विवाह की थी कौन माँ होती जो अपने पुत्री की बात न माने माता ने एक और व्यक्ति हो अपनी इस योजना में शामिल किया जो कि थे तो श्री राम के भाई पर पृथ्वी को अपने फन पर उठाये शेषनाग जी यानी लक्षमण तीनो ने युति लगाई और यह तय हुआ कि पृथ्वी माता धनुष को पकड़ कर बैठ जाएगी और कितना ही कोई धनुष उठाने की कोशिश करे उसे लेने नही देंगी लेकिन जब श्री राम धनुष उठाएंगे तो उन्हें वह धनुष दे देंगी लेकिन प्रश्न उठा कि यह माता धरती को कैसे पता चलेगा जी अब श्री राम धनुष उठाने वाले है तो लक्षमण ने कहा मैं धरती पर अपना पैर पटकूँगा और आपको पता चल जाएगा कि अब श्री राम धनुष उठाने जा रहे है और आप धनुष छोड़ देना।
योजना के मुताबिक हुआ भी ऐसा ही बड़े बड़े महारथी भी धनुष नही उठा पाए चूँकि जनक जी को ये बात तो पता ही नहीं थी। वे अधीर होने लगे और भरी सभा में उठकर खीझ के कारण कहने लगे हे वीर योद्धाओ क्या तुममे इतना भी साहस नहीं की इस प्राचीन भगवान् शिव के धनुष को उठा सको क्या तुम्हे तनिक भी लज्जा नहीं आती मेरी बेटी सीता घर में लीप करते समय इसी धनुष को एक हाथ से उठाकर इसकी जगह परिवर्तन कर देती थी, और तुम बड़े बड़े देशों के राजकुमार, राजा और इस पृथ्वी के बड़े बड़े योद्धा इस स्वयम्बर आकर और इस धनुष को उठाना और तोडना तो दूर आप लोग उसे हिला भी नहीं पाए। क्या आप लोगों की तरह पूरी पृथ्वी वीरों से खाली हो गई है, इतना सुनते ही लक्ष्मण जी तुरंत उठकर खड़े हो गए और कहने लगे नहीं महाराज जनक इस भरम में आप न रहें। क्योकि जब तक रघुवंशी मेरे ज्येष्ठ भ्राता प्रभु श्री राम जी इस सभा मौजूद है आपके मुख से ये बातें शोभा नहीं देती है।
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Things Of “RAMAYANA” |
गुरु विश्वामित्र जी ने समय व लग्न अनुकूल जान कर परु श्रीराम जी को आज्ञा दी तब गुरु की आज्ञा से जैसे ही भगवान श्री राम उठे लक्षमण ने धरती पर पैर को पटका फिर
लखन लखेउ रघुबंसमनि ताकेउ हर कोदनडु, पुलकित गात बोले बचन चरण चापि ब्रम्हाण्डु।।
दिसिकुंजरहु कमठ आहि कोला, धरहु धरिन धरि धीर न डोला।।
रामु चहहीं संकर धनु तोरा, होहु सजग सुनि आयसु मोरा।।
इस प्रकार सभी को सावधान किया और साथ ही इशारा दिया माता पृथ्वी को की अब भगवान श्री राम धनुष के लिए उठ गए है और समय आ गया है अपनी योजना को जीवंत करने का और हुआ वही जो नियत था श्री राम ने धनुष लिया ,लिया मतलब ऊपर की जो पंक्तिया है उसमें भी है धनुष लिया और धनुष किससे लिया जो देगा उसी से तो लिया जाएगा यानी
लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़े, काहुँ न लखा देख सब ठाढे।।
तेहिं छन राम मध्य धनु तोरा, भरे भुवन धुनि घोर कठोरा।।
माता पृथ्वी ने सहर्ष धनुष श्री राम के हाथों में दिया और राम ने धनुष लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते हुए धनुष को मध्य से तोड़ दिया
(छंद )
भरे भुवन भोर कठोर राव रबि बाजी तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कुरुम कलमले।।
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हे सकल विकल विचारहीं।
कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति वचन उचारहि।।
तो दोस्तों इस प्रकार शिव धनुष टूटते ही जनक जी का प्रण पूरा हुआ और श्री राम और सीता माता का विवाह भी सम्पन्न हुआ।
बोलो सिया वर राम चन्द्र की जय
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नीतीश श्रीवास्तव
कायस्थ की कलम से
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तो मित्रों ये थी श्री सीता स्वयम्बर से सम्बंधित एक विशेष वर्णन जिसकी जानकारी, मैंने आपसे साझा की। येसे ही रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर निरंतर आते रहे और अपने दोस्तों ,परिवार वालों और सभी प्रियजनों तक भी ये महत्वपूर्ण जानकारी पहुचायें। धन्यवाद।
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