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एक हृदय विदारक रामचरित मानस का प्रसंग
दोस्तों ये तो सभी जानते है कि भगवान श्रीराम और रामायण के बारे में लेकिन बहुत कम लोगो पता होगा इस मार्मिक प्रसंग के बारे में जो मै आपको बता रहा हूँ माता सीता का हरण हो चुका था मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम अपने अनुज लक्षमण के साथ माता सीता की खोज कर रहे थे। हे सीते हे जानकी की प्रतिध्वनि चारो दिशाओ में गूंज रही थी ,लेकिन वे हृदय विदारक गूंज बिना उत्तर के ही वापस आ रही थी। माता सीता कहाँ है किस हालात में होंगी ऐसा सोच सोच कर शायद हर जीव निर्जीव का हृदय शोकाकुल हो रहा था। सारे वृक्ष जीव जंतु पाषाण की भांति खड़े श्री राम के रुदन को छाती में दबाये रो रहे थे लेकिन कौन जानता कि सीता माता कहा है किसे पता था कि सीता जी कहा है कोई नही जानता ,प्रभु श्री राम माता सीता को आवाज देते आगे बढ़ते जा रहे थे ।
सहसा कदम थमे किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी ,अपनी वेदना का उसी क्षण त्याग कर किसी अन्य की वेदना का एहसास कर उस दिशा में बढ़े जिस दिशा से उस कराहने की आवाज़ आ रही थी ,पास जाकर देता तो पक्षी राज जटायु धरती पे लहूलुहान पड़े थे और घायल अवस्था मे प्रभु श्री राम का नाम ले रहे थे ,हाथों में धनुष लिए श्रीराम दौड़े धनुष को पृथ्वी पर रख और जटायु को अपनी गोद मे ले लिया। आंखे खोलो जटायु मैं राम हूँ आवाज़ सुन जटायु ने आंखे खोली तो लगा सारा ब्रम्हांड सिमट आया अपनी पीड़ा को त्याग इस बात से आनंदित हो कि इस ब्रम्हांड के रचयिता की गोद मे अपने को धन्य और श्री राम को धन्यवाद देने लगा। लेकिन पीड़ा तो थी घाव अपना मुंह बाये निरंतर रक्त प्रवाह कर रहे थे।
पीड़ा ने क्षण मात्रा में ही सारा आनंद भुला दिया आंखों में आंसू लिए भगवान श्रीराम को माता सीता के हरण का संदेश दिया और नाम आंखों से सीता माता को न बचा पाने की आत्मग्लानि से स्वयं को श्री राम के ही गोद में खुद को छिपाने की कोशिश की, मगर ये क्या मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जो कि स्वयं करुणा के सागर है सामने पीड़ा से छटपटाते जटायु को देख कर भी आंखों से एक आंसू नही निकला ये कैसी माया दुसरो की पीड़ा देख जिनकी आंखों से अश्नु धार बाह उठती हो मानो आंसुओ के जलाशय सुख गए सभी यह देख कर चकित थे लक्षमण से जटायु की पीड़ा देखी नही जा रही थी लेकिन श्री राम के सूखे नयन देख लक्षमण भी चकित थे। ये क्या भगवान की गोद मे भक्त तड़प रहा है लेकिन वेदना का एक आंसू भी भगवान की आंखों में नही ये प्रभुराम ये बता तो देते कि जो दूसरों की पीड़ा को अपना समझ जहां अश्नु धार बह उठती थी आज वह सुख गयी यह कैसे हो सकता है सारा संसार चकित था यह देख कर , देवता नर किन्नर गंधर्व भी भगवान को शायद मन ही मन ऐसा न करने की दुहाई दे रहे थे लेकिन राम की माया राम ही जाने जटायु का सर अपनी गोद मे लिए निरंतर जटायू को देखते ही जा रहे थे और उसके घावों को सहला रहे थे ।जटायु भी उन दो बूंद आंसुओ को तरस रहे थे जिसकी अपेक्षा शायद उन्होंने भी की होगी।
जटायु ने प्रभु श्री राम की तरफ देखते देखते अपने प्राण त्याग दिए लेकिन भगवान श्री राम की आंखों से एक आंसू नही निकला ।यह भी किसी हृदय विदारक घटना से कम नही था कि करुणा निधि की आंखों से करुणा के दो आंसू नही निकले अपने दोनों हाथों में जटायु को ले उसका अंतिम संस्कार किया और भगवान श्री राम की आंखों से अश्नु धार हिमायल से निकली गंगा की भांति बह निकली । किसका साहस था कि उन्हें रोक लेता लेकिन अचरज भी था कि जबतक जटायु जीवित था उनकी आंखों से अश्नु की एक भी धार न फूटी लेकिन जटायु के देह त्यागते ही अश्नुधार स्वयमेव निकलने लगी ऐसी माया श्री राम की कौन समझ पाता सिर्फ वो जिसने राम को जाना उनके महात्म्य को जाना
जटायु के जीवित रहते भगवान श्री राम की आंखों से आंसू इस लिए नही निकले की वो जानते थे आंसुओ में नमक होता है आंसुओ की अगर एक भी बून्द जटायु के घावों पर गिर जाती तो जटायु की पीड़ा और बढ़ जाती जोकि ऐसा भगवान राम कभी नही चाहते ।प्रभु श्री राम उलाहना का सारा ज़हर पी गये लेकिन अपने भगत को कष्ट नही होने दिया कि उनके आंसू जटायु की पीड़ा का कारण न बन जाये ऐसे है प्रभु श्री राम।
यूँ ही वह मर्यादा पयरुषोत्तम नही है कुछ तो बात है उनके चरित्र में
जय श्री राम
नीतीश श्रीवास्तव कायस्थ की कलम से
दोस्तों यही है वह मार्मिक प्रसंग जिसे हमने आपसे साझा किया दोस्तों ऐसे ही और रोचक जानकारी के लिए हमारी वेवसाइट पर निरंतर आते रहिये और अपने दोस्तों के साथ साझा करना न भूलिए। धन्यवाद
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