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क्यों अकबर महान हो गया और राणाप्रताप कही खो गये
दोस्तों हमें बचपन मे पढ़ाया गया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है ,बड़ा वजन लगता था, जब हम इसे धर्मनिरपेक्ष देश कहते थे , ज्यों ज्यों हम बड़े हुए त्यों त्यों हमे धर्मनिरपेक्ष का मतलब पता चला और सही मानिए हम ठगे जा चुके थे धर्म निरपेक्षता के नाम पर , हमे बताया गया हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई आपस में सब भाई भाई ,हिन्दू मुस्लिम भाई चारे की एक मिसाल है और इस भाई चारे में सच ये है कि वो हमारे भाई है और हम उनका चारा, जैसे जैसे बड़े हुए तो गंगा हिन्दू और यमुना मुसलमान हो गयी सब हमे गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल देने लगे।लखनऊ जैसा शहर उसकी पहचान रुमी गेट हो गयी, जबकि इसे लक्षमण जी ने बसाया था। वो सारी पहचान मिटा के लखनऊ नवाबों का शहर हो गया। जो एक कायर नवाब जिसके बारे में कहा जाता है कि चप्पल पहनाने वाले नही थे तो पकड़ा गया। एक योजना बद्ध तरीके से उसके कसीदे पढ़े जाने लगे। उसी तरह अकबर महान हो गया राणाप्रताप कही खो गये, पृथ्वीराज चौहान तो गायब ही हो गये , बहादुरशाह जफर तो याद रहा लेकिन नाना साहब पेशवा को कोई नही जानता, औरंगजेब तो पूरे भारत मे जाना गए लेकिन शिवाजी सिर्फ मराठों की शान बन कर रह गए ,मीरकासिम को सब भूल गए लेकिन जयचंद मुहावरों में ढल गया की रोज याद दिलाया जाए कि एक हिन्दू गद्दार हो गया। दाराशिकोह को कोई याद नही करना चाहता क्यों कि उसने हिन्दुओ के धर्मग्रंथो का अनुवाद किया था।
दोस्तों इतिहास लिखने वालों ने जो मन मे आया या उस समय के राजा को खुश करने के लिए इतिहास से छेड़छाड़ की ताकि सच्चाई लोगो तक न आ सके , और हमने भी वही पढ़ा जो हमे पढ़ाया गया ,और हम आज भी उसी का अनुसरण कर रहे है अगर हम उनका अनुसरण करना भी चाहे तो आधुनिकता के ठेकेदार हमारा मज़ाक उड़ाते है । अगर कोई धोती कुर्ता पहने तो उसे गवार कह के मुह चिढ़ाते है जबकि दक्षिण भारत ने अपनी संस्कृति को सम्हाल के रखा है बड़े से बड़ा आदमी अपने शुभ कामों में अपना पारंपरिक परिधान पहनता है। वही अगर माथे पे टीका लगाना हो तो अरे छोटा लगाना माथा न खराब हो जाये, क्यों? क्यों कि मॉडर्न बनने में ये खराब लगेगा , लेकिन मुल्लो जैसी दाढ़ी रखने में अपनी शान समझते है ये मॉडर्न लोग। दीवाली अच्छी नही लगती, होली पानी की बर्बादी लगता है लेकिन दूसरे के धर्मो का त्योहार खूब भाता है उनमे उन्हें शांति नज़र आती है और ये सब क्यों? क्यों कि हम अपनी पीढ़ी को अपने धर्म का ज्ञान दे ही नही पा रहे।
पंडित अगर दक्षिणा मांग ले तो क्या कहते है वो पंडित तो ठग रहा है , पंडित लुटे ले रहा। बनिया तो बनिया बुद्धि ही लगाएगा , ठाकुर तो गुंडे होते है ,लाला तो सूद खोर होता है , ब्राह्मण लालची होता है ये सब हमने ही तो बनाया और सबके मन मे ही डाला अपने धर्म का दुष्प्रचार हमने ही किया ,जातियों को कर्म प्रधान ना मानकर परंपरागत बना दिया , अपनी जाति बताने यानी सरनेम बताने में शर्म आने लगी क्यों कि हमने अपनी पीढ़ी को सच नही बताया कभी ये नही बताया कि हमारी पद्धति हमारी संस्कृति हमारी परंपराएं कितनी महान है। हम आधुनिकता में उलझ गये जैसा कुछ लोगो का षडयंत्र था और जाने अनजाने में हम अपनी सनातन संस्कृति का ह्रास करने लगे वहीं हमारे बच्चे देखते है कि लोग नियमित चर्च जाते है एक निश्चित दिन पर मस्जिद कोई भी जरूरी काम हो फिर भी उसके लिए वक़्त निकलते है क्या हम ऐसा करते है? अपने बच्चे को बताया कि
- पूजा करना क्यों जरूरी है ?
- रोज नहाना क्यों जरूरी है?
- गीता रामायण का पाठ करना क्यों जरूरी है?
- पैर छूने की संस्कृति क्यों जरूरी है?
- मंदिर जाना क्यों जरूरी है?
तो इसका जबाब होगा नही हमने कभी नही बताया, जब नही बताया तो वो दूसरी संस्कृति की तरफ आकर्षित होंगे ही उनका क्या दोष इसी लिए सबसे पहले अपनी संस्कृति और सनातन धर्म से अपने बच्चों को अवगत कराएं स्वयं पढ़े और दूसरों को भी पढ़ाये , इंसानियत जरूरी है लेकिन अगर अपने धर्म पर आंच आये तो उसकी रक्षा करे , हमारे धर्म ग्रंथ स्वयं में परिपूर्ण है वे हमें सब कुछ सिखाते है सामाजिक ज्ञान से लेकर आध्यात्मिक ज्ञान तक ,हम अपने धर्म की उपेक्षा न करे और न ही किसी को करने दे, ये जान ले कि भारत ही एक मात्र देश है जो हिन्दुओ का है और यही हिन्दू नही रहेंगे तो कहा जाएंगे हिन्दू को हिंदुस्तान में ही रहने दे हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार करे आज जरूरत है हिन्दू सनातन धर्म को मजबूत करने की और कौन करेगा, क्योकि यदि आप अपने धर्म की रक्षा करोगे तो धर्म आपकी रक्षा करेगा।
नितीश श्रीवास्तव
कायस्थ की कलम से
तो मित्रों ये थी से जुडी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी, जिसे मैंने आपसे साझा की। ऐसे ही रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर निरंतर आते रहे और अपने दोस्तों ,परिवार वालों और सभी प्रियजनों तक भी ये महत्वपूर्ण जानकारी पहुचायें। धन्यवाद।
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