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Chandra Shekhar Aazad हिंदी में हेल्प पाओ |
महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद की माँ का ये हाल क्यों हुआ?
एक विशेष मंत्रणा का हवाला देकर चंद्र शेखर आज़ाद को नेहरू ने उनको अपने इलाहबाद स्थित आनन्द भवन में बुलवाया तब आज़ाद जवाहर लाल नेहरू से उनके निवास पर भेंट की। आजाद ने पण्डित नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी (भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु) को उम्रकैद में बदलवाने के लिये जोर डालें! नेहरू ने कहा ठीक है आज़ाद हम इस विषय पर बात करेंगे इतना आश्वाशन पाकर आज़ाद वहां से निकलकर अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे तभी सी०आई०डी० का एस०एस०पी० नॉट बाबर जीप से वहाँ आ पहुँचा। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी आ गयी। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी में आजाद को वीरगति प्राप्त हुई। यह दुखद घटना 27 फ़रवरी 1931 के दिन घटित हुई और हमेशा के लिये इतिहास में दर्ज हो गयी उसी महान क्रांतिकारी की माँ का ये हाल ………
“अरे बुढिया तू यहाँ न आया कर, तेरा बेटा तो चोर-डाकू था, इसलिए गोरों ने उसे मार दिया“
जंगल में लकड़ी बीन रही एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग महिला से वहां खड़े भील ने हंसते हुए कहा.
“बुजुर्ग औरत ने गर्व से कहा नहीं, मेरे आज़ाद ने आजादी के लिए कुर्बानी दी है “
उस बुजुर्ग औरत का नाम जगरानी देवी था और इन्होंने पांच बेटों को जन्म दिया था, जिसमें आखरी बेटा कुछ दिन पहले ही शहीद हुआ था। उस बेटे को ये माँ प्यार से चंदू कहती थी और दुनियां उसे “ आजाद ” जी हाँ ! “चंद्रशेखर आजाद” के नाम से जानती है।
दोस्तों हिंदुस्तान आजाद हो चुका था, आजाद के मित्र सदाशिव राव एक दिन आजाद के माँ-पिता जी की खोज करते हुए उनके गाँव भाबरा गाँव (चन्द्रशेखर आज़ादनगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला) पहुंचे। आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था। चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी। आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी। अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माताश्री उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर की उपलें बीनकर लाती थी और उन उपलों तथा लकड़ियों को बेचकर अपना पेट पालती रही।
लेकिन वृद्ध होने के कारण इतना काम नहीं कर पाती थीं कि भरपेट भोजन का प्रबंध कर सकें। कभी ज्वार कभी बाज़रा खरीद कर उसका घोल बनाकर पीती थीं क्योंकि दाल चावल गेंहू और उसे पकाने का ईंधन खरीदने लायक धन कमाने की शारीरिक सामर्थ्य उनमे शेष ही नहीं थी।
दोस्तों शर्मनाक बात तो यह कि उनकी यह स्थिति देश को आज़ादी मिलने के 2 वर्ष बाद (1949) तक जारी रही।
चंद्रशेखरआज़ाद को दिए गए अपने एक वचन का वास्ता देकर सदाशिव जी उन्हें अपने साथ अपने घर झाँसी लेकर आये थे। क्योंकि उनकी स्वयं की स्थिति अत्यंत जर्जर होने के कारण उनका घर बहुत छोटा था, अतः उन्होंने आज़ाद के ही एक अन्य मित्र भगवानदास माहौर के घर पर आज़ाद की माताश्री के रहने का प्रबंध किया था और उनके अंतिम क्षणों तक उनकी सेवा भी की।
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वह अमर झांसी की जगह जहाँ माँ जगरानी देवी की समाधि स्थल है |
मार्च 1951 में जब आजाद की माँ जगरानी देवी का झांसी में निधन हुआ, तब सदाशिव जी ने उनका सम्मान अपनी माँ के समान करते हुए उनका अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से ही किया था।
आज़ाद की माताश्री के देहांत के पश्चात झाँसी की जनता ने उनकी स्मृति में उनके नाम से एक सार्वजनिक स्थान पर पीठ का निर्माण किया। लेकिन दोस्तों उस समय प्रदेश की तत्कालीन सरकार (प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे गोविन्दबल्लभपन्त) ने इस निर्माण को गयासुदीन गाजी खान उर्फ नेहरू के कहने पर झाँसी की जनता द्वारा किया हुआ अवैध और गैरकानूनी कार्य घोषित कर दिया। किन्तु झाँसी के नागरिकों ने तत्कालीन सरकार के उस शासनादेश को महत्व न देते हुए चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित करने का फैसला कर लिया।
मूर्ति बनाने का कार्य चंद्रशेखर आजाद के ख़ास सहयोगी कुशल शिल्पकार रूद्रनारायण सिंह को सौपा गया। उन्होंने फोटो को देखकर आज़ाद की माताश्री के चेहरे की प्रतिमा तैयार कर दी। जब सरकार को यह पता चला कि आजाद की माँ की मूर्ति तैयार की जा चुकी है और सदाशिव राव, रूपनारायण, भगवान् दास माहौर समेत कई क्रांतिकारी झांसी की जनता के सहयोग से मूर्ति को स्थापित करने जा रहे हैं, तो उसने अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापना को देश, समाज और झाँसी की कानून व्यवस्था के लिए खतरा घोषित करके उनकी मूर्ति स्थापना के कार्यक्रम को प्रतिबंधित कर दिया और पूरे झाँसी शहर में कर्फ्यू लगा दिया।
चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई, ताकि अमर बलिदानी चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति की स्थापना ना की जा सके। लेकिन जनता और क्रांतिकारी आजाद की माताश्री की प्रतिमा लगाने के लिए निकल पड़े। अपने आदेश की झाँसी की सडकों पर बुरी तरह उड़ती धज्जियों से तिलमिलाई तत्कालीन सरकार ने अपनी पुलिस को सदाशिव को गोली मार देने का आदेश दे डाला। किन्तु आज़ाद की माताश्री की प्रतिमा को अपने सिर पर रखकर पीठ की तरफ बढ़ रहे सदाशिव को जनता ने चारों तरफ से अपने घेरे में ले लिया। जुलूस पर पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। सैकड़ों लोग घायल हुए, दर्जनों लोग जीवन भर के लिए अपंग हुए और कुछ लोगों की मौत भी हुई। (हालांकि मौत की पुष्टि नहीं हुई।)
चंद्रशेखर आज़ाद की माताश्री की मूर्ति स्थापित नहीं हो सकी। आजाद हम आपको कौन से मुंह से आपको श्रद्धांजलि दें, जब हम आपकी माताश्री की 2-3 फुट की मूर्ति के लिए उस देश में 5 फुट जमीन भी न दे सके?
जिस देश के लिए आप ने अपने प्राणों का बलिदान दे दिया उसी देश की तत्कालीन सरकार ने आप सभी क्रांतिकारियों का अपमान किया है।
अगर आपका ह्रदय जरा भी द्रवित हुआ हो उस महान देशभक्त माँ के लिए तो दोस्तों इस पोस्ट को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ शेयर जरूर करें।
“भारत माता की जय”
तो मित्रों ये थी हमारे उस महान देशभक्त माँ से सम्बंधित एक विशेष जानकारी, जिसे मैंने आपसे साझा की। येसे ही रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर निरंतर आते रहे और अपने दोस्तों ,परिवार वालों और सभी प्रियजनों तक भी ये महत्वपूर्ण जानकारी पहुचायें। धन्यवाद।
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