पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के मृत्यु का राज ? Pt. Deendayal Upadhyay

By | May 13, 2020
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पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के मृत्यु का राज ?

दोस्तों इतिहास में बहुत सारे राज दफन है लेकिन पता नही कब हक़ीक़त से पर्दा उठेगा ,उठेगा भी तो कैसे भविष्य को अब चिंता नही स्वार्थ के पुतले खड़े है , अब किसी को इतिहास में रुचि ही नहीं  है, बनावटी इतिहास ने  तो नई पीढ़ी को खोखला कर दिया लेकिन सच अपने आप सामने आ जायेगा क्योंकि दोस्तों वो कहते है न कि सच है जो छिपाए नही छिपता।
बात 10 फरवरी 1968 की है पंडित जी को लखनऊ में श्री मती लता खन्ना के घर ठहरे हुए थे। प्रातः काल 8 बजे बिहार से श्री अश्वनी कुमार जी का फ़ोन मिला ,जिसमे उन्होंने पंडित जी से बिहार में आयोजित होने वाली बैठक में अगले दिन उपस्थित रहने का आग्रह किया फ़ोन पर दिल्ली में महामंत्री श्री सुन्दर सिंह भंडारी से बातचीत कर उन्होंने पटना फ़ोन कर अपनी स्वीकृति दे दी।
शाम 7 बजे पठानकोट स्याल्दह एक्सप्रेस की प्रथम श्रेणी के डिब्बे में पंडित जी पटना के लिए रवाना हुए , साथ मे एक छोटी सी अटैची ,हल्का बिस्तारा पुस्तको का एक झोला तथा टिफिन था । श्री राम प्रकाश गुप्ता उत्तर प्रदेश के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री, तथा पीताम्बर दास विदा करने वालो में प्रमुख थे ।जिस बोगी में पंडित जी को आरक्षण मिला था उसका आधा भाग तृतीय श्रेणी का था ।कंपार्टमेंट में पंडित जी तथा एस पी सिंह थे जो भारतीय भौगोलिक सर्वेक्षण विभाग के सहायक निदेशक थे । बी कंपार्टमेंट में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य श्री गौरीशंकर रॉय , जो वाराणसी जा रहे थे। अकेले थे ,सुविधा की दृष्टि से उनकी बर्थ श्री राय के साथ परिवर्तित करा दी गयी।
जौंनपुर स्टेशन पर श्री यदवेंद्रदत्त दुबे का निजी पत्र लेकर श्री कन्हैया जी रात्रि 12 बजे आये। पत्र पढ़कर उसका उत्तर शीघ्र देने का आश्वासन देकर पंडित जी द्वार तक श्री कन्हैया को छोड़ने आये। रात्रि 12.12 बजे ट्रेन जौनपुर से चल दी।2.15 बजे यह बोगी काटकर दिल्ली हावड़ा एक्सप्रेस में जोड़ दी गयी वह 2.50 बजे मुगलसराय से रवाना हुई। प्रातः 6.00 बजे पटना स्टेशन पर श्री कैलाशपति मिश्र स्वागतार्थ उपस्थित थे, पर लखनऊ बोगी खाली थी। उन्होंने सोचा किसी कारणवश पंडित जी नही आ सके। प्रातः 9.30 बजे मोकामा स्टेशन पर किसी ने बी कंपार्टमेंट में सीट के नीचे एक अटैची देखी और वह रेलवे अधिकारी को सौप दी।
11 फरवरी 1968 को प्रातः 3.30 बजे मुगलसराय यार्ड के लीवरमैन ईश्वरदायल ने सहायक स्टेशन मास्टर को टेलीफोन पर सूचना दी कि प्लेटफॉर्म से लगभग 150 गज दूर मेन लाइन की दक्षिण की ओर के बिजली खंभा नंबर 1276 से लगभग 3 फुट दूर एक शव लोहे और कंकडों के बीच पड़ा है ।वास्तव में शव को सबसे पहले शटिंग पोर्टर दिगपाल ने प्रातः ,3.00 बजे देखा था ।उसने किशोर मिश्र गनर को कहा और मिश्र ने आगे ईश्वरदायल को सूचना दी। प्रातः 3.35 बजे स्टेशन मास्टर ने पुलिस को सूचना दी ।3.45 बजे 3 सिपाही वहां निगरानी के लिए पहुंचे और प्रातः 4.00 बजे रेलवे पुलिस के दरोगा श्री फतेहबहादुर वहाँ पहुच गए । सुबह 6.00 बजे रेलवे डॉक्टर आया जिसने अधिकृत रूप से मृत घोषित किया।प्रातः 7.30 बजे शव का प्रथम फोटो लिया गया ।शव जमीन पर सीधा पड़ा था मानो किसी ने बहुत संभाल कर रखा हो ।कमर से मुह तक का भाग शाल से ढका था। बायां हाथ मुड़कर सिर की ओर चल गया था ।इसकी मुट्ठी में पांच रुपये का नोट था। हाथ पर नाना देशमुख अंकित घड़ी थी ।जेब मे 26 रुपये तथा प्रथम श्रेणी का टिकट था।
प्राप्त सामग्री से व्यक्ति की पहचान पुलिस न कर सकी अतः शव को अज्ञात व्यक्ति का शव घोषित कर पोस्टमार्टम के लिए भेजे जाने की व्यवस्था की गई। 6 घंटे पश्चात शव को प्लेटफॉर्म पर लाया गया तथा उनकी ही धोती से शव को ढक दिया गया ।थोड़ी देर में वहां भीड़ जमा हो गयी तथा स्थानीय रेलवे कर्मचारी श्री वनमाली भट्टाचार्य ने उस शव को पंडित दीनदयाल उपाध्याय का शव बता कर पहचान की । श्री वनमाली ने अविलंब कार्यकर्ताओं को सूचना दी और पलक झपकते ही, सैकड़ो कार्यकर्ता वहां इकट्ठा हो गए तब तक पुलिस ने भी लखनऊ से टिकट नंबर बताकर फोन पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुष्टि कर ली।
शव का पोस्टमार्टम वाराणसी में हुआ ।वहां से हवाई जहाज द्वारा शव को दिल्ली में 30 राजेंद्र प्रसाद रोड लाया गया शव के साथ श्री अटल बिहारी बाजपेयी, श्री बलराज मधोक एवं अन्य कई बड़े नेता आये । अंतिम दर्शन करने तथा शृद्धाञ्जली देने के लिए देश के सभी प्रमुख दलों के नेता आये।दोपहर 1.00 बजे राम नाम सत्य है के साथ शव यात्रा शुरू हुई मार्ग में अनेको स्थानों पर आम जनता तथा अनेक नेताओ ने श्रद्धांजलि दी। शव यात्रा अपरहण 4.30बजे निगम बोध घाट पर पहुंची जहां अंतिम संस्कार के लिए एक विशेष चबूतरे का निर्माण किया गया शाम 6.12 बजे शव रथ से उतार कर चबूतरे पर रख गया ।सभी वरिष्ठ नेताओं ने अंतिम श्रद्धांजलि जी मंत्रों के उच्चारण के साथ चिता की अग्नि प्रज्वलित की गई। पंडित दीनदयाल उपाध्याय अमर रहे अमर रहे के नारे गूंजते रहे।
अब आप भी सोच रहे होंगे आखिर क्यों मार दिया गया पंडित जी को, वह महा पुरुष जिसके दूरदर्शी विचारधारा के कायल सभी शिखर राष्ट्रवादी नेता सम्मान करते थे आखिर किस श्यङयन्त्र के शिकार हुए दोस्तों ये मेरे मन में भी बड़ा विषाद रहा क्या हुआ होगा और किस प्रकार मर्मभेदी घटना घटी होगी इसका पता लगाने वालों को लगाना चाहिए था, हक़ीक़त क्या थी सबको पता चलनी चाहिए थी कि क्या हुआ लेकिन किसी ने इसकी सुधि नही ली, क्योंकि कोई सच के पीछे नहीं गया इतिहास में क्यों छिपाया गया। लेकिन दोस्तों अब तो वक़्त है अब तो बताओ क्यों जो अखंड भारत का सपना देख रहे युगपुरुष पंडित दीं दयाल उपाध्याय जी की  युही रहस्यमयी मृत्यु को प्राप्त हुए।
लेकिन इतिहास को जानने की रुची है ही कहाँ कोई नही चाहता कि रहस्य से पर्दा उठे मुझे इसका इंतजार है और रहेगा। यदि आपको भी है तो अभी दूसरों के साथ इस लेख को साझा करें।

नितीश श्रीवास्तव
कायस्थ की कलम से
तो मित्रों ये थी हमारे युगपुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के मृत्यु सम्बंधित एक विशेष जानकारी, जिसे  मैंने आपसे साझा की। येसे ही महत्वपूर्ण राष्ट्रवादी जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर निरंतर आते रहे और अपने दोस्तों ,परिवार वालों और सभी प्रियजनों तक भी ये महत्वपूर्ण जानकारी पहुचायें। धन्यवाद।

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