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Untold real story of Revolutionary Pt. Ram Prasad Bismil |
क्रान्तिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की जीवन के वो अनछुए पहलू जो आपको झकझोर देंगे
सभी जानते है कि हमारे देश के वीर क्रांतिकारियों ने स्वयं को न्योछावर कर अपना एवं अपने कुटुम्ब का नाम विश्व मे रोशन किया उनकी कुर्बानी के लिए पूरा देश ऋणी रहेगा लेकिन क्या बस इतना ही कह देना उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लिए काफी है, शायद नही आज जरूरत है आगे की पीढ़ी को यह बताने की कि जिस पीढ़ी के वह वारिश है वह कितनी महान थी जिसके लिए शब्दकोश भी खाली हो जाये ,देश के लिए सब कुछ यानी अपना जीवन निस्वार्थ भाव से लुटा देना ही उनकी महानता का परिचायक नही था वरन उनकी सोच उनके विचार किसी आत्मघाती विस्फोटक सामग्री से कम नही थे ,मेरे हिसाब से जो भी सम्मान उन वीर क्रांति कारियों को मिलना था शायद नही मिल सका मेरा मानना है कि मैं अपने माध्यम से उनके विचारों को भारत वासियों से अवगत कराऊँ।
बात है पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की , लगभग सभी उनके बारे में जानते है लेकिन उनके जीवन के वो अनछुए पहलू जो आपको झकझोर देंगे।
दोस्तों ये तो सभी जानते होंगे बिस्मिल को काकोरी षड्यंत्र के फैसले के तहत 6 अप्रैल 1927 को मृत्युदंड की सज़ा सुनाई गई और तदनुसार 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में फांसी दी गयी थी,
आइये पहले आपको उस काकोरी काण्ड के बारे में अवगत कराते है फिर बात करते है बिस्मिल के उन अनछुए पहलुओं की–
शाहजहाँपुर में उनके घर पर 7 अगस्त 1925 को हुई एक इमर्जेन्सी मीटिंग में निर्णय लेकर योजना बनी और 9 अगस्त 1925 को शाहजहाँपुर रेलवे स्टेशन से बिस्मिल के नेतृत्व में कुल 10 लोग, जिनमें अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिड़ी, चन्द्रशेखर आजाद, शचीन्द्रनाथ बख्शी, मन्मथनाथ गुप्त, मुकुन्दी लाल, केशव चक्रवर्ती, मुरारी शर्मा तथा बनवारी लाल शामिल थे, 8 डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर रेलगाड़ी में सवार हुए। इन सबके पास पिस्तौलों के अतिरिक्त जर्मनी के बने चार माउज़र पिस्तौल भी थे जिनके बट में कुन्दा लगा लेने से वह छोटी स्वचालित राइफल की तरह लगता था और सामने वाले के मन में भय पैदा कर देता था। इन माउजरों की मारक क्षमता भी साधारण पिस्तौलों से अधिक होती थी। उन दिनों ये माउजर आज की AK – 47 रायफल की तरह चर्चित थे। लखनऊ से पहले काकोरी रेलवे स्टेशन पर रुक कर जैसे ही गाड़ी आगे बढ़ी, क्रान्तिकारियों ने चेन खींचकर उसे रोक लिया और गार्ड के डिब्बे से सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया। उसे खोलने की कोशिश की गयी किन्तु जब वह नहीं खुला तो अशफाक उल्ला खाँ ने अपना माउजर मन्मथनाथ गुप्त को पकड़ा दिया और हथौड़ा लेकर बक्सा तोड़ने में जुट गये। शीघ्रतावश चाँदी के सिक्कों व नोटों से भरे चमड़े के थैले चादरों में बाँधकर वहाँ से भागने में एक चादर वहीं छूट गयी। अगले दिन अखबारों के माध्यम से यह खबर पूरे संसार में फैल गयी। दोस्तों ब्रिटिश सरकार ने इस ट्रेन डकैती को गम्भीरता से लिया और D. I. G. के सहायक (C. I. D. इंस्पेक्टर) मिस्टर आर॰ ए॰ हार्टन के नेतृत्व में स्कॉटलैण्ड की सबसे तेज तर्रार पुलिस को इसकी जाँच का काम सौंप दिया।
6 अप्रैल 1927 को विशेष सेशन जज ए० हैमिल्टन ने 115 पृष्ठ के निर्णय में प्रत्येक क्रान्तिकारी पर लगाये गये आरोपों पर विचार करते हुए लिखा कि, यह कोई साधारण ट्रेन डकैती नहीं, अपितु ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने की एक सोची समझी साजिश है। इस हालत में उसमें किसी भी प्रकार की कोई छूट नहीं दी जा सकती। फिर भी, इनमें से कोई भी अभियुक्त यदि लिखित में पश्चाताप प्रकट करता है और भविष्य में ऐसा न करने का वचन देता है तो उनकी अपील पर अपर कोर्ट विचार कर सकती है, लेकिन दोस्तों यकीन मानिये उन सभी 10 क्रांतिकारियों में किसी ने भी लिखित या मौखिक में माफ़ी नहीं मांगी, और हँसते हँसते फाँसी के फंदे को चूम लिया।
अब बात करते है उस दर्द भरे पहलू की
एक दिन पूर्व यानी 18 दिसंबर 1927 को उनकी माता जी और पिता जी छोटा भाई रमेश सिंह क्रांतिकारी शिव वर्मा एवं स्वदेश पत्रिका के संपादक पंडित दशरथ प्रसाद द्विवेदी उनसे अंतिम भेट करने जेल पहुचे, मां को देख कर बिस्मिल की आंखे डबडबा आयीं ये देख माँ ने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर बिस्मिल को बुरी तरह फटकारते हुए बोली , ये क्या राम कल तुम्हे फांसी होने वाली है और आज तुम्हारी आँखों मे आंसू छि: छि:, बाहर जो कोई मुझसे मिलता है मैं उससे शान से कहती हूं देखना मेरा राम कितनी बहादुरी से हँसते हँसते फांसी चढ़ेगा अच्छा होता तू मेरी कोख से जन्म ही न लेता, मां का ऐसा डांटना और राम का ऐतिहासिक जवाब सभी के हृदय चीरने वाला था उन्होंने उत्तर दिया नही माँ ये कमजोरी के नही प्रार्थना के आंसूं है कि मेरा अगला जन्म भी तुझ जैसी वीरांगना मां की कोख से ही हो जो फांसी से एक दिन पहले अपने बेटे को आंखों में आंसू देख कर इस प्रकार बुरी तरह फटकारे, अब आप बताइये कौन सी ऐसी माँ होगी जो अपने अंतिम सांस तक अपने बच्चे को बचाने में ना लगा दे लेकिन नहीं, उस वीरांगना माँ की यदि शहस्त्रो मुख से प्रसंशा की जाए तो कम ही है, और ऐसे वीर सपूत की जिसने स्वतंत्रता की राह में अपने प्राणो आहुति देकर भारत माता के सर को ऊँचा करने के साथ साथ सभी स्वतंत्रता सेनानियों को ऐसा आत्मबल उनकी रगों में प्रवाहित किया की वे सभी क्रांतिकारी भी स्वतंत्राता की राह में हँसते हँसते अपने प्राणो को न्योछावर कर दिया।
18 दिसंबर की रात्रि सदा की भांति जेल कर्मचारियों के दूध दिए जाने पर यह कहते हुए वापस कर दिया कि अब इसकी जरूरत नही कल से मैं अपनी माँ का दूध पियूँगा ,
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बिस्मिल जी के फांसी का दृश्य |
दूसरे दिन 19 दिसंबर 1927 की भोर पहर फांसी पर चढ़ते समय बड़े उत्साह से बिस्मिल ने भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे लगाए , उस दिन बड़े सवेरे ही बिस्मिल के माता पिता और साथी जयदेव कपूर एवं बड़ी संख्या में गोरखपुर जनता जेल के फाटक पर पहुच गयी ,जेल अधिकारियों ने यह कहते हुए बिस्मिल के पार्थिव शरीर को देने से मना कर दिया कि जेल स्वयं उनका अंतिम संस्कार करेगा । इस पर माता वही पर अड़ गयी कहा तब तो जेल वालो को दो शरीरों का अंतिम संस्कार करना पड़ेगा एक बिस्मिल का एक उनकी माँ का इस पर जेल अधिकारियों ने जुलूस न निकले जाने की शर्त के साथ शव दिए जाने की बात कही मां ने कहा हम जुलुश नही निकलेंगे अगर जनता चाहेगी तो हम कैसे रोक सकते है
काफी मान मनौवल के साथ जेल वालों ने बिस्मिल का शव परिवार वालों को सौंप दिया हज़ारों का जुलूस अर्थी को कंधा देते शमशान की ओर चल पड़ा गोरखपुर के उर्दू बाजार जब जुलूस पहुंचा तो माँ ने सबको रुकने का इशारा किया और अर्थी को सीधा खड़ा करने को कहा और स्वयं एक ऊंचे चबूतरे पर चढ़ कर अत्यंत मार्मिक शब्दो मे संबोधन किया उस समय वह उपस्थित क्रांतिकारी साथी जयदेव कपूर ने अपने शब्दों में कहा कि एक अनपढ़ और राजनीति से अनभिज्ञ माँ ने अपने मुखारबिंद से जो ओजस्वी एवं प्रभावशाली उदगार निकले शायद ही उन्होंने कभी किसी के मुख से सुने हो। मां ने अपने भाषण के अंत मे अपने छोटे बेटे रमेश का हाथ जयदेव कपूर के हाथ मे देते कहा मैं इसे भी देश को समर्पित करती हूं ये भी अपने बड़े भाई राम प्रसाद बिस्मिल का अनुसरण करे आवश्यकता पड़ने पर यह भी हँसते हँसते अपने प्राणों की आहुति दे दे।
ऐसी वीरांगना मां को इतिहास में जो स्थान मिलना चाहिए था वह नही मिल पाया , देश वासियों से जो स्नेह व श्रद्धा पाने की वह अधिकारी थी वह उन्हें कतई नही मिली जीते जी उन्होंने कभी किसी के सामने हाथ नही फैलाया।
दोस्तों यह भी उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश शासन द्वारा राम प्रसाद बिस्मिल की माँ को 60 रुपये प्रतिमाह की सम्मान राशि दिए जाने की घोषणा किये जाने के बाद जब सचिव स्तर का अधिकारी सम्मान राशि के साथ संबंधित कागज लेकर उनके पास पहुचा तो उस स्वाभिमानी वीरांगना मां ने यह कहते हुए उसे लेने से इनकार कर दिया कि “मुझे अपने बेटे के बलिदान की कीमत नही चाहिए “
वास्तव में हम सबने ऐसे प्रेरक व्यक्तित्वों के साथ इंसाफ नही किया और आधुनिकता में उन्हें भुला दिया जिसके लिए भगवान शायद ही हमे माफ करे
नितीश श्रीवास्तव
कायस्थ की कलम से
कायस्थ की कलम से
तो मित्रों ये थी एक वीर स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल जी से सम्बंधित एक विशेष वर्णन जिसकी जानकारी, मैंने आपसे साझा की। येसे ही रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर निरंतर आते रहे और अपने दोस्तों ,परिवार वालों और सभी प्रियजनों तक भी ये महत्वपूर्ण जानकारी पहुचायें। धन्यवाद।
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