कैकेयी को किसने दिया था बचपन में श्रापवरदान ? मंथरा क्यों थी कैकेयी की इतनी ख़ास ? :: Kaikeyi and Manthara

By | April 27, 2020
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कैकेयी को किसने दिया था बचपन में श्रापवरदान ?
मंथरा क्यों थी कैकेयी की इतनी ख़ास ?

दोस्तों रामायण का एक और चरित्र मुझे याद आता है जिसकी वजह से राम श्री राम कहलाये वह चरित्र है केकैयी का जिसने अपने ऊपर कलंक लेकर राम को श्री राम बना दिया उसके त्याग को युही भुलाया नही जा सकता रामायण प्रसंग पढ़ते हुए मुझे एक कथा स्मरण हुई , जिसे मैंने अपने एक आचार्य से विद्या मंदिर में सुनी थी कहानी इस प्रकार थी कि केकैयी अपने पुत्र मोह में इतनी निष्ठुर कैसे हो गयी जबकि वह तो राम को भरत से भी ज्यादा प्यार करती थी। 
कहा जाता है कि केकय नरेश राजा अश्वपति की एक मात्र पुत्री केकैयी थी जोकि बहुत सुंदर व चंचल स्वभाव की थी। केकैयी राजा की अकेली संतान थी इसी लिए उन्हें बहुत ही प्यार से पाला भी गया और शायद यही लाड़ उनकी चंचलता का कारण भी था। एक दिन की बात है केकैयी अपनी कुछ सहेलियों के साथ अपनी वाटिका में खेल रही थी तभी उनकी नज़र एक वृद्ध ब्राह्मण पर पड़ी जो बहुत ही वृद्ध थे जिसके कारण उनकी शारीरिक त्वचा उम्र के साथ हड्डियाँ छोड़ रही थी ,जिसकी वजह से उनके मुख में सांस लेने पर हवा भर जाती तो मुह फूल जाता था और जब सांस छोड़ते थे तो मुह पिचक जाता था ,ऐसा देख कर केकैयी को बहुत मज़ा आ रहा था और वह इस प्रक्रिया को देख कर खुश हो रही थी । सहसा मन में खयाल आया कि अगर इनका मुह काला कर दिया जाए तो और भी अच्छा लगेगा काला मुह फिर फूलेगा और पिचकेगा तो देखने मे और आनंदित करेगा ऐसा सोच कर कही से कालिख ले आयी और उन विप्रजन के मुख पर लगा दी अब तो केकैयी को और मज़ा आने लगा और जोर जोर से हसने लगी।
हसी के ठहाको को सुनकर ब्राह्मण देवता की नींद टूटी गयी और आदतानुसार उनके दोनों हाथ उनके मुख पर चले गए जैसा कि सबके साथ होता है जब उठो तो सबसे पहले हाथ चेहरे पर ही जाता है ऐसा उनके साथ भी हुआ प्रातः स्मरण की अवस्था मे जैसे ही अपने हाथों में कालिख देखी उनके क्रोध का ठिकाना न रहा बहुत क्रोधित हुए और बिना सोचे समझे श्राप दे डाला कि जिसने भी मेरे मुख पर कालिख लगाई है उसे अपने जीवन मे कलंक लेकर ढोना पड़ेगा , ब्राह्मण देवता के ऐसे वचन सुन बालिका केकैयी भय से कांपने लगी उसे कुछ भी नही सूझ रहा था। तब तक ब्राह्मण देवता के मुख से निकल की क्या मुझे कोई जल दे सकता है कि मैं अपना मुख धो सकू आव न देखा ताव केकैयी झट से गयी और एक लोटे में जल ले आयी उस जल से केकैयी ने ब्राह्मण देवता के हाथ धुलवाए और मुह भी धुलवाया नन्ही बच्ची के इस प्रकार सेवा भाव देख कर विप्रवर ने उसे वरदान दिया कि जिसने भी उनके हाथ धुलवाए उसके हाथ वज्र के समान कठोर हो जाये इस प्रकार वरदान देकर वो वहां से चले गए लेकिन ये श्राप और वरदान दोनों ने ही केकैयी का उम्र भर साथ दिया
देवासुर संग्राम में राजा दशरथ के साथ केकैयी भी युद्ध मे गयी दशरथ जी के रथ का पहिया निकल गया और केकैयी ने अपनी उंगली से रथ के पहिये को थामे रही क्यों कि वरदान के अनुसार उनके हाथ वज्र के होगये थे और कलंक ने तो केकैयी का साथ कभी छोड़ा ही नही पूरी दुनिया आज भी केकैयी को कलंकिनी ही मानती है क्यों कि उसने श्री राम को वनवास भिजवाया और इम्तेहा यह तक है कि शायद कोई ही अपनी पुत्री का नाम केकैयी रखता हो। 
वैसे दोस्तों आप सबके मन में एक विचार तो जरूर आता होगा आखिर में मंथरा दासी इतनी ख़ास कैसे थी कैकेयी की जबकि दासी तो सिर्फ नौकर ही होती है तो आइये हम आपको बताते है आखिर वो कौन सी बात थी जिसकी वजह से मंथरा कैकेयी की इतनी ख़ास बनी-

आखिर इतनी ख़ास क्यों थी कैकेयी को परामर्श देने वाली मंथरा?

दोस्तों जैसा की उपरोक्त मैंने आपको अवगत कराया की महारानी कैकेयी केकय नरेश राजा अश्वपति की बेटी थीं आगे की कहानी में कैकेयी और मंथरा के बीच बेहद घनिष्ठ सम्बन्ध होने की जो बात सामने आती है, उसकी कथा बेहद दिलचस्प है कैकेयी के पिता और उनकी माँ एक दिन बगीचे में टहल रहे थे, तभी राजा अश्वपति ने हंसों के जोड़ों को आपस में संवाद करते सुना और चूंकि वह पक्षियों की भाषा समझ सकते थे, इसलिए हंसों की बातचीत सुनकर उन्हें हंसी आ गयी। कैकेयी की माँ ने जब राजा अश्वपति से उनकी हंसी का कारण पूछा तो राजा ने बताने से इनकार कर दिया इस इनकार के पीछे का कारण यह था कि राजा को यह वरदान मिला था की आप पृथ्वी पर सभी पशु पक्षियों की आवाज़ को सुन और समझ पाएंगे लेकिन यदि वे उन बातों को किसी से बता देंगे तो उसी क्षण उनकी मृत्यु हो जाएगी बस इन्ही कारणों से राजा हंसों की बातचीत अपनी रानी को नहीं बता रहे थे। पर रानी लगातार जिद्द करती रहीं.इस तरह का अनर्गल हठ देखकर राजा अश्वपति ने रानी कैकेयी को त्याग दिया और बचपन में ही कैकेयी बिन माँ की हो गयीं. तब उनकी देखभाल के लिए मंथरा नामक दासी नियुक्त की गयी और अपने कुटिल स्वभाव के कारण वह जल्द ही कैकेयी का मन-मस्तिष्क समझने में सफल रही आगे के दिनों में दोनों की यही घनिष्ठता रामायण की रचना का आधार बनी, जिससे आप सभी अवगत है
नितीश श्रीवास्तव
कायस्थ की कलम से
तो मित्रों ये थी हमारे पवित्र ग्रन्थ से जुडी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी, जिसे मैंने आपसे साझा की। ऐसे ही रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर निरंतर आते रहे और अपने दोस्तों ,परिवार वालों और सभी प्रियजनों तक भी ये महत्वपूर्ण जानकारी पहुचायें। धन्यवाद।
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