एक हिंदू के रूप में, क्या आपने कुरान पढ़ा है? इसे पढ़ने के बाद आप क्या सोचते हैं?
जब यही बात किसी ने क्योरा प्रश्न उत्तरी वेबसाइट पर ‘सेंट एंड्रयूज सीनियर सेकेंडरी स्कूल’ में पढ़े दीपक श्रीवास्तव जी से की तो सुनिए उनके जवाब –
दोस्तों मैं निजी तौर पर सभी धर्मों सम्मान करता हूँ लेकिन यदि कोई ये प्रश्न करे कि एक हिंदू के रूप में, क्या आपने कुरान पढ़ा है? इसे पढ़ने के बाद आप क्या सोचते हैं? तो मैं यह कहूंगा कि –
जी हाँ, मैंने कुरआन को पढ़ा है। मैंने 3 बार क़ुरआन पढ़ी है और अब मैं चौथी बार कुरआन को पढ़ रहा हूं। पहली बार जब पढ़ी तो मुझे कुरआन विरोधाभास और नफ़रत से भरी एक किताब लगी। मुझे उसमें ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिसे मैं अपने जीवन में उतार सकूं। मैंने उसे यह मानकर दोबारा पढ़ा कि मेरे पढ़े में कहीं गलती हो सकती है इसलिए किसी चीज पे उंगली उठाने से पहले उसे ठीक से समझ लेना भी चाहिए। दोबारा पढ़कर तो मेरा मन इतना विचलित हो गया कि अब मैं यह निर्णय नहीं ले पा रहा था कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कौम के ग्रंथ में तर्क से ज्यादा कुतर्क भरे हैं। जिसका जवाब खुद मुसलमानों के पास नहीं है और शायद यही कारण है कि इस्लाम जब उत्तर विहीन होता है तब या तो वह तलवार की नोक पर या फिर फतवे के ज़ोर पे प्रश्न और प्रश्नकर्ता को दबा देता है। क्यूंकि खुद कुरआन ना जाने कितनी बार यह कहती है कि ईमान लाओ।
जहां रसूल पे जवाब नहीं बना जिसके पास खुद खुदा का दूत आता हो उसे भी लोगों में विश्वास पैदा करवाने के लिए इमान का हवाला देना पड़ रहा है। आखिर क्यों? यह सवाल मन को कचोटता ही रहा। अगर मुहम्मद साहब एक बार खुदा से कहकर उस देवदूत जिब्राईल को आम लोगों को दिखवा देते तो कुरान को बार बार इमान लाओ नहीं कहना पड़ता। मैंने फिर भी अपनी गलती मानकर और यह सोचकर की ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी बेबुनियाद किताब को मानने वाले लोगों की संख्या इतनी बड़ी हो तो फिर मैंने कुरान को तीसरी बार पढ़ा। इस बार मैंने हदिसों के साथ मिलान करके पढ़ा तो मैंने पाया कि मैं ही सही हूं।
क़ुरआन में अगर ऐसा कुछ होता तो मेरे अंदर इस्लाम कबूल करने की हूक उठती। अगर वह वाकई आसमानी किताब होती तो मेरा हृदय परिवर्तन करके इस्लाम की ओर मेरा झुकाव पैदा करती पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस सवाल ने मेरे सभी सवालों की पुष्टि कर दी कि अल्लाह इतनी हल्की बातें कभी नहीं कर सकता। फिर मैंने गहराई से और पता किया तो पाया कि इस्लामिक देशों में जिन मुसलमानों ने कुरआन, हदिसों, और लाइफ ‘ऑफ मुहम्मद किताब’ (अंडरस्टैंडिंग मुहम्मद) को ठीक से पढ़ लिया उन्होंने इस्लाम धर्म छोड़ दिया। इस्लामिक देशों में पिछले कुछ दशकों में एक करोड़ 10 लाख लोगों ने इस्लाम छोड़ दिया। और गहराई से पता किया तो पाया कि एक आम बच्चे से लेकर इमाम तक सभी लोगों को सिर्फ कुरआन रटी होती है उसका अर्थ नही पता होता। इससे मुझे यह पता चला की कुरआन के अर्थों को जानने वाले उलेमा पूरे विश्व में सिर्फ सैकड़ों में है और कौम को मानने वाले अरबों में और उन उलेमाओं ने लोगों को मानसिक ग़ुलाम बना कर उनके मन में यह भर दिया है कि कुरआन से बड़ी कोई पढ़ाई नहीं है क्योंकि यह अल्लाह की किताब है और वह बेचारे इस बात को सच मानकर जिहाद के नाम का गलत अर्थ समझकर गलत दिशा में चल चुके हैं और दुनिया की नाक में दम कर के रखा है। मैं कुरआन इसके बावजूद चौथी बार पढ़ रहा हूं अब।
एक और नई खोज मिली की कुरआन की शुरुआत में जो लिखा है वो पहले से ही यहूदी धरम में मौजूद है। बाइबल में भी मिल जाएगा। और बाद में जो लिखा है वो रसूल मुहम्मद के व्यक्तिगत विचार हैं। मैं माफी चाहूंगा कि मेरे 4 बार कुरआन पढ़ने से भी मुझे कहीं से यह नहीं लगा कि यह आसमानी किताब है। सिर्फ धरम के ठेकेदार अपनी दुकान चलाने के लिए चार शादियों का हवाला देकर, जन्नत की हुरों के सपने दिखाकर, या फिर लोगों को बरगला कर इस्लाम धरम को बचाए हुए हैं। इससे ज्यादा कुछ समझ नहीं आता मुझे।
हर हिन्दू को ये किताब पढ़नी चाहिए जिससे आपको इस्लाम की सच्चाई आपको भी समझ में आये, दोस्तों यू ० एस ० ए ० में प्रकाशित लेखक “अली शीना” की किताब “अंडरस्टैंडिंग मुहम्मद” का लिंक आपको दे रहा हु जहाँ से आप डाउनलोड करके पढ़ सकते है सिर्फ 2 MB में –
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नोट :- यह लेख किसी धर्म विशेष या संप्रदाय को ठेस पहुंचने के नहीं लिखी गई है यह सिर्फ तर्क मात्र है।