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अंग्रेजो के ज़माने के गुप्तचर जो क्रांतिकारियों के बलिदान के गवाह आज भी हैं क्योंकि…….?
दोस्तों आज मैं जो भी लिख रहा हूँ ये मेरे अपने शब्द नही है ,फिर भी लिखने की आवश्यकता है और लोगो को जानने की भी, की हम कौन सी सच्चाई जानते है और कौन सी नही , आज के सारे शब्द उस शख्स के है जिनका नाम है धर्मेंद्र गौड़ जो स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेजी सरकार में थे सहायक केंद्रीय गुप्तचर अधिकारी प्रथम के पद पर कार्य कर रहे थे भारत के स्वतंत्र होने पर श्री गौड़ चंद्रशेखर आज़ाद की हत्या में सम्मलित गद्दार साथियों की वर्षो खोज करते रहे और सभी तथ्य प्रमाण जुटाए जिन्होंने आज़ाद की हत्या के लिए विश्वासघात कर अंग्रेजी सरकार की सहायता की थी।
काफी पुरानी बात है अंग्रेजो का ज़माना था गुप्तचर विभाग का बड़ा बोलबाला था अफसरों के क्या कहने उन्ही के दम खम पर अंग्रेजी हुकूमत टिकी हुई थी।
प्रांतीय गुप्तचर विभाग का हैडक्वाटर(Headquarter) इलाहाबाद में था जो सन 1932 में ही लखनऊ लाया गया था। वर्तमान स्थान से पहले इसका कार्यालय नंबर 110 माल रोड पर भार्गव की आलीशान कोठी में था जो इस समय केंद्रीय गुप्तचर विभाग के सब्सिडियरी इंटवलिजेंस ब्यूरो उत्तरप्रदेश और बिहार का दफ्तर है । हेड क्वार्टर (Headquarter) पर अंग्रेजो और एंग्लो इंडियन के अलावा स्वामिभक्त मुसलमान और हिन्दू भी नियुक्त थे ।बनारस इलाहाबाद लखनऊ कानपुर आगरा और मेरठ में मुसलमान तथा हिन्दू ग्रुप अफसर नियुक्त थे ।अपने अधीन अनेक जिलों की राजनैतिक गतिविधियों पे नज़र रखने और क्रांतिकारियों को धर दबोचने का दायित्व मुख्यतः इन्ही को सौपा गया था। हेड क्वार्टर (Headquarter) पर इनका काम चार पार्टी अफसर देखते थे ।दो एंग्लो इंडियन और एक हिन्दू, एक मुसलमान। प्रान्त के छोटे बड़े सभी जिलों में डिस्ट्रिक इंटेलिजेंस स्टाफ कार्यरत था, नीचे से ऊपर तक सभी एक डोर में बंधे थे। गुप्तचर अधिकारियों की नज़र में विशेष रूप से रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ,अनुशीलन समिति , सोशलिस्ट पार्टी तथा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ही खटकती थी, सरकार को इन दलों की गतिविधियों से अवगत कराने में जो चूंका समझो वो गया। वहीं दूसरे दर्जे के दल समझे जाते थे – आल इंडिया कोंग्रेस कमेटी, मुस्लिम लीग, जमायते ए इस्लामी तथा हिन्दूमहा सभा।
आतंकवादी दल से बंगाल बिहार और उत्तरप्रदेश के कई क्रांतिकारियों के नाम जुड़े है । कालांतर में ये नाम फाइलों में स्वतः ही लोप हो गये और प्रमुख प्रधानता दी गयी अनुशीलन ग्रुप तथा उसके बाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी को और फिर अंत मे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी को।
वर्षों पूर्व इन फाइलों को सी.आईं. डी. हेड क्वार्टर लखनऊ में देखने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ कुछ फ़ाइल ए सेक्शन में थी और कुछ एन जी ओ यानी नॉट टू गो टू आफिस सेक्शन में । सीक्रेट टॉप सीक्रेट तथा टॉप सीक्रेट एंड पर्सनल रिपोर्ट के आधार पर ही इन्हें उक्त सेक्शनों में स्थान दिया गया था। कव्वाल मुखबिरों के नाम उनके छद्म नाम मंजूर किये गए वेतन आदि की फाइलें ही एस पी , एस बी की निजी देख रेख में रोनियों कैबिनेट में रखी जाती थी जिसकी चाभी भी उन्ही के पास होती थी। इन्हें हासिल करना सरल न था। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी , काकोरी कॉन्सपिरेसी केस लाहौर, कॉन्सपिरेसी केस आदि की सत्य कथा इन्ही थोड़ी, दीमक लगी मोटी – मोटी फाइलों में कैद है सुविधा नुसार इन्हें डायरी करेस्पोंसेन्स और कटिंग फोलियो में विभाजित किया गया है। डायरी फोलियो में अधिकतर कानपुर लखनऊ इलाहाबाद बनारस और मेरठ के ग्रुप अफसरों की ही सीक्रेट रिपोर्ट है ।
एक महान आश्चर्य जनक टॉप सीक्रेट एंड पर्सनल ङी ओ लेटर भी देखने को मिला ।डायरेक्टर इम्पीरियल ब्यूरो ने संयुक्त प्रान्त के इंस्पेक्टर जनरल पुलिस को लिखा था जिसमे लिखा गया था – (क्रांतिकारियों और आतंकवादियों से भारतीय युवक बहुत प्रभावित होते जा रहे है ।यह स्थिति हमारे लिए बहुत ही खतरनाक है क्यों न जवाहरलाल नेहरू जैसे शांतिप्रिय व्यक्ति को इन गुमराह युवकों का नेता बनने के लिए तैयार किया जाए ) हाशिये पर आई जी ने ए आई जी , सी आई डी को आदेश दिया ,प्लीज डू दि नीड फुल उचित कार्यवाही कीजिये
कटिंग फोलियो में क्रांतिकारियों आतंकवादियों आदि से संबंधित अखबारों में प्रकाशित किये गए समाचारों की वो कतरने आज भी मौजूद है। क्रांतिकारियों की तलाश में जारी किए गए सैकड़ो लुक आउट नोटिस है ।अमुक क्रांतिकारी आतंकवादी का हुलिया आदि रिकॉर्ड में हुआ तो उसका चित्र पकड़ने या पकड़ाने वाले व्यक्ति के लिए सरकार द्वारा घोषित धन राशि आदि सभी जानकारियां दर्ज है इनसे सावधान करने वाले विज्ञापनों में तलाशियाँ में बरामद किए गए क्रांतिकारियों के पर्चे भी है ।
सिवाय एक अंतिम चित्र के अमर शहीद चंद्रशेखर आज़ाद का अन्य कोई फोटो नही था इन फाइलों में ।शायद उनका चित्र प्राप्त नही किया जा सका हो।विभिन्न मुखबिरों द्वारा दी गयी सूचनाओं के आधार पर केवल उनका निम्न हुलिया ही हरे रंग की मोठे पट्टे वाली फाइल के ऊपर बीचो बीच दर्ज है सबसे ऊपर अंग्रेजी में मोटे मोटे काले अक्षरों में छपा है – क्रिमिनल इंवेस्टिमेशन डिपार्टमेंट ऑफ दि यूनाइटेड पोविंसेज़
नाम चंद्र शेखर आज़ाद , उर्फ बलराज उर्फ़ पंडित जी वल्दियत सीताराम कौम ब्राह्मण साकिन उन्नाव बदरका
हुलिया लंबाई 5 फिट छह इंच सांवला रंग तगड़ा जिस्म गोल चेहरा लंबी नाक मुह पर हल्के चेचक के दाग
विभागीय आदेशानुसार कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर निगरानी नही रखी जाती थी। वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओ के पत्र सेंसर होते थे कभी कभी इनके द्वारा अच्छी सूचनाएं भी मिल जाती थी भविष्य में होने वाले कार्यक्रमो का पहले पता चल जाता था ।
(और पढ़ें :- ठा० रोशन सिंह, लाहिड़ी जी और बिस्मिल जी के फांसी की सजा के दिन के मार्मिक वर्णन से आँखे भर जाती हैं)
आईजी ने आज़ाद संबंधी अपनी मुकम्मिल रिपोर्ट ग्रह सचिव तथा डायरेक्टर इम्पीरियल ब्यूरो को भेजी थी, हो न हो आज भी वे सारे दस्तावेज वही हो लेकिन कौन यह जानने की कोशिश करेगा कि क्या हुआ था उनके साथ जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर किये कोई नही जानना चाहता इतिहास में क्या छिपाया गया कि कोई रुचि नही लगा लेकिन मैं चाहता हु की यह सब सार्वजनिक हो देश यह जाने की उन वीर क्रान्तिकारियो को क्यों छला गया उनको जिन्हें सबसे ज्यादा सम्मान मिलना चाहिए था। आखिर कौन था वो इतिहास का काला चेहरा जिसने भारत के गौरवपूर्ण सुनहरे इतिहास पर कालिख पोतने का प्रयत्न किया।
नितीश श्रीवास्तव
कायस्थ की कलम से
तो मित्रों ये थी हमारे स्वतंत्रता सेनानियों से जुडी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी, जिसे मैंने आपसे साझा की। ऐसे ही रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर निरंतर आते रहे और अपने दोस्तों ,परिवार वालों और सभी प्रियजनों तक भी ये महत्वपूर्ण जानकारी पहुचायें। धन्यवाद।
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